Social science research in India boasts a rich history, marked by both continuity and change. While the roots of social inquiry in India stretch back centuries, the modern era of social science research has witnessed significant growth, fueled by institutional support and a growing recognition of its importance for national development…
Dr. Irshad Khan Aishwarya Patil
This study aims to investigate the level of spiritual intelligence among ninth-grade students in Surguja District of Chhattisgarh. Spiritual intelligence refers to the capacity to access and apply spiritual qualities and principles in daily life. The research seeks to understand the spiritual intelligence level, its components…
Nishant Kumar Dongre Prof. C. Aruna
This paper highlights the invisible and ignored aspects of manual scavenging in the 21st century. Manual scavenging is a crisis that continues to be there in the 21st century with its modern form. This century has witnessed the transition of manual scavenging from dry-latrine to septic-sewer cleaning. This transition…
अभिजीत सिंह डॉ परमात्मा कुमार मिश्रा
प्रस्तुत शोध–पत्र में राम जन्मभूमि आंदोलन के मीडिया कवरेज का बांग्लादेशी समाज पर पड़े प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन तस्लीमा नसरीन के उपन्यास ‘लज्जा‘ के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है। इस अध्ययन में एक मिश्रित–विधि दृष्टिकोण अपनाया गया है, जिसमें इंटरनेट से प्राप्त बाबरी विध्वंस से संबंधित समाचार लेखों और अन्य शोध कार्यों से प्राप्त द्वितीयक डेटा का विश्लेषण किया गया है। साथ ही…
सरताज सिंह
भारत की राजनीति में बहुत सारे नेताओं के द्वारा देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है. परंतु बाबू जगजीवन राम के द्वारा भारतीय राजनीति में अपना एक विशेष व महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जनता के विकास के लिए काफी ज्यादा नई–नई योजनाए बनाई ताकि भारत की जनता पूर्ण रूप से विकसित हो सके। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को एक समान माना और समाज से जाति प्रथा को समाप्त करने पर बल दिया। उन्होंने समाज में दलित…
डॉ. आलोक कुमार पाण्डेय
भारतीय पत्रकारिता की अब तक की विकास यात्रा में महिला पत्रकारों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व और उचित सम्मान नहीं प्राप्त हुआ है, इस तथ्य से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। भारतीय पत्रकारिता में महिला पत्रकारों की स्थिति पर गहन अंतर्दृष्टि डालने से इसके पीछे कई कारण उभर कर सामने आते…
विजय कुमार
गोस्वामी तुलसीदास की काव्य रचना श्रीराम चरित मानस हिंदू सांस्कृतिक-धार्मिक प्रतीक के रूप में लोकमानस में जितकी गहरी पैठ बनायी, उतनी सफलता वाल्मीकिरचित रामायण को नहीं मिली। जनमानस की भाषा में गोस्वामी तुलसीदास को इसे धरातल पर उतारने में असीम संघर्ष करना पड़ा। तुलसीदास के जीवन-संघर्ष पर केंद्रित रघुवर दास, बेणीमाधव, कृष्णदत्त मिश्र, अविनाथ राय और संत तुलसी के लिखे…
7. भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने के लिए डिजिटल संचार रणनीतियाँ (विशेष ट्वीटर के सबंध में)
दिवाकर दुबे प्रो. डॉ. मनीषा शर्मा
प्रस्तुत शोध अध्ययन भारत में कोविड -19 की दूसरी लहर से निपटने के लिए डिजिटल संचार रणनीतियाँ: (विशेष ट्वीटर के सबंध में) यह दिखता है की कैसे देखते ही देखते COVID 19 वैश्विक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया मीडिया और सरकार के लिए पूर्ण लॉकडाउन से गुजरना पहला अनुभव था महामारी के दौरान जनता के बीच मोबाइल फोन के उपयोग में भारी वृद्धि हुई और इसे जनता और सरकार दोनों…
गौरव चौहान
बुंदेलखंड की ग्रामीण जनता से जुड़े तथा उसकी रागात्मक भावनाओं को सहज ढंग से महसूस करने वाले लोक साहित्यकारों ने लोकमानस में उमड–घुमड़ रही क्रांतिकारी भावनाओं को समय–समय पर वाणी दी है। अनेक लोक साहित्यकार जनता के प्रतिनिधि बनकर स्वाधीनता संघर्ष में कूदे थे और इन्होंने शहीदों तथा देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सबकुछ कुर्बान करने वाले क्रांतिकारियों का यशोगान करके…
डॉ. रामशंकर डॉ. मनीषा सक्सेना
वैश्वीकरण के दौर में इन लोगों का एक बड़ा वर्ग असंदर्भित हो गया। इन असंदर्भित वर्ग उन्नयन के रूप में वैकल्पिक मीडिया की दृष्टि का अध्ययन नितांत अवश्ययक हो जाता है। औद्योगिकीकरण में बढ़ोत्तरी, शहरीकरण और ज्ञान समाज के उभार ने हाशिए पर लोगों के जाने की पहले की प्रवृत्ति को किस तरह प्रभावित किया है और समाज में नई सामाजिक पहचान को किस प्रकार जोड़ा है? बदलती दुनिया में वंचित लोगों के सशक्तीकरण….
प्रो. भारती शुक्ला
लोक संस्कृति में अश्लीलता के अर्थ जड़ एवं अकाट्य नहीं है बल्कि अश्लीलता एक सापेक्षिक शब्द है जो संदर्भ, पात्र, अवसरानुसार अपने अर्थ ग्रहण करता है। अश्लीलता का यह अर्थ विस्तार पूरे लोक में अन्र्तभुक्त है। सन्दर्भ, स्थान और समय के अनुसार इसका प्रयोग तथा इसकी चर्चा…
Zuber Hashmi Prof. (Dr.) Monika Verma
This paper explores the integration of microcinema—a form of ultra-short, independent filmmaking—into educational settings as a transformative pedagogical tool. By examining the historical evolution of microcinema, its unique characteristics…