Journals

January-March, 2021

00. Cover page, Preface and Index 

Behavioral effects of Web Series on Indian Youth

 Kuldeep Kumar                                                        Dr. Rachana Gangwar

We now live in a digital world. Everyone is always following the latest trends using the Internet and mobile phones. The web series runs on multiple digital platforms. Web serials play an important role in India. In countries where television programming and various film and entertainment industries face strict censorship of content, web series have become a latest source  of entertainment for millennial…

A study about Delhi’s voting pattern in Assembly and General elections

Divyshikha                                                                Dr. Bhawani Shankar

Delhi is an Indian Union Territory with its legislative assembly and a lieutenant governor. There are 70 Legislative Assembly constituencies and 7 Lok Sabha constituencies in Delhi. Focusing on local issues, citizens are increasingly voting. They are making a clear difference between state and central level politics. The study shows that the Delhi constituency has voted differently in national and state elections since the 2013 assembly elections. A keen glance at Delhi’s voting pattern shows a sharp difference in the way the city selects state and national representatives…

Social Media: The Log-In Drug

Surbhi Bhati

Marie Winn called television, The Plug-In Drug in 1977. She argued that the higher involvement of families with television reduced their involvement with each other. Although technology has evolved and there is a new biggest kid on the block but the impact of media is growing faster than ever. New media created a new method of communication. A way of communication that was unachievable with the established medium of media. And that is the reason that the impact of television pales in comparison to the impact that new media has on society…

कोरोना महामारी के संकट में फेक न्यूज़ : एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

 डॉ. ललित कुमार

कोरोना एक विकराल महामारी के रूप में आज हमारे सामने है। दुनिया के 215 देश इस समय कोरोना महामारी की चपेट में हैं’। चीन के वुहान शहर से कोरोना वायरस की खबर जब पहली बार दुनिया के सामने आई थी, तो शायद ही किसी को इस खबर का अंदेशा रहा हो कि  कोरोना वायरस को कभी इतनी कवरेज मिले, लेकिन जैसे ही इस वायरस ने चीन में विकराल रूप लेना शुरू किया, वैसे ही वैश्विक मीडिया का ध्यान इस ओर गया। इसलिए वैश्विक स्तर पर कोरोना का कहर और मीडिया कवरेज करती पत्रकारों की टीम एक योद्धा की तरह रिपोर्टिंग करने में लगी रही…

सोशल मीडिया पर पोस्ट होने वाली कविताओं में हिन्दू-मुस्लिम संबंध: एक विश्लेषण

डॉ. विनीत कुमार झा उत्पल

सोशल मीडिया के दौर में साहित्यिक विधाओं की रचना और पुनर्रचना एक गंभीर विषय के तौर पर सामने आई है. ऐसे वक्त में जब एक ओर सोशल मीडिया हर आम व्यक्ति को अभिव्यक्ति की नई आजादी का प्लेटफार्म मुहैया करा रहा है, वहीं इसी प्लेटफार्म पर हजारों साल पुरानी हिंदू-मुस्लिम सद्भाव और वैमनस्यता की कविताएं भी लिखी जा रही है. इनमें कई अनगढ़ कवि हैं तो तुकबंदी के नए धुरंधर अपनी रचनाओं के जरिये कभी गंभीर कविताएं लिखते हैं तो कभी उच्छश्रृंखलता की सीमा भी पार करते हैं…

हिंदी पत्रकारिता एवं राष्ट्र पुनर्निर्माण: विशेष संदर्भ पाञ्चजन्यएवं राष्ट्रधर्मपत्रिका

अनुपम कुमार राय

आम तौर पर हम देश एवं राष्ट्र को एक साथ परिभाषित करने का प्रयास करते हैं, या दोनों को एक-दूसरे का पर्यायवाची मानते हैं। भारतीय संदर्भ में बात करें तो यह काफी हद तक सही है। परन्तु राष्ट्रवाद के आधुनिक अवधारणा के अनुसार दोनों में समानताओं के साथ-साथ काफी अंतर विद्यमान है। राष्ट्रवाद के आधुनिक अवधारणा देश को सीधे तौर पर निश्चित भौगोलिक सीमा या रेखाओं में बांधता है…

समय का सच और अदम की कविता का अध्ययन

डॉ. राम मनोहर मिश्र

अदम गोंडवी हिंदी गजलगोई को लोक के निकट लेकर पहुँचने वाले महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। अदम ने गजल की रचनाधर्मिता में सार्थक हस्तक्षेप करते हुए उसे सीधे जनसरोकारों से जोड़ा और गज़ल को जटिल शास्त्रीय विधान से मुक्त कर जनरुचि के अनुकूल बनाया। आजादी के बाद आमजन के टूटते सपने…

हरिजन समाचार पत्र की संवाद शैली

देवेश कुमार दूबे

गांधीजी राजनैतिक सक्रियता के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक रूप में भी निरंतरता दिखाते रहे, इसी के आलोक में उन्होने ‘हरिजन’ समाज के उत्थान के लिए अनेक कार्यक्रमों का संचालन किया। वैचारिक रूप में ‘हरिजन’ समाज के उत्थान के लिए अपने विचारों को कई पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से प्रस्तुत करते रहे। विशेष रूप से ‘हरिजन’ समाचार पत्र सन् 1933 में उनके द्वारा संचालित किया गया…

वैकल्पिक मीडिया में न्यू आईटी एक्ट दिशानिर्देशों की भविष्य में दशा और दिशा

भंवर लाल सेणचा

जनमाध्यमों में वैकल्पिक मीडिया का विशेष महत्त्व है। ये केवल सूचना ही नहीं पहुचाते बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तनों को जरिया भी बनते है। इंटरनेट का अविष्कार 1970 के दशक से वर्तमान परिदश्य तक संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वर्तमान में संचार के लिए इंटरनेट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा माध्यम है…

परंपरागत संचार माध्यम और लोकनाट्य परंपरा

डॉ. प्रवीण कुमार झा

आधुनिक जनसंचार माध्यमों के पूर्व हमारे समाज में परम्परागत संचार माध्यम जैसे लोकनृत्य, लोक कथाओं, लोक गीत का लंबे समय तक प्रयोग होता रहा है। लोकनाट्यों का लोकजीवन से अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। यही कारण है कि लोक से संबंधित उत्सवों, अवसरों तथा मांगलिक कार्यों के समय इनका अभिनय किया जाता है…

जादूगोड़ा यूरोनियम खनन से पर्यावरण एवं स्त्री स्वास्थ्य पर प्रभाव

डॉ. चेतन सोरेन

यह अध्ययन जादूगोड़ा पूर्वी अवस्थित टाटानगर से 25 किमी पर आधारित है । जंगल-झाड़ियों वाले इलाके में आज रासायनिक कचरा  भरा पड़ा है । इस क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से रेडियम (रेडियो धार्मित) भी निकल रहा था। आज जिस क्षेत्र में भूमिगत खनन निर्मित हैं  पहले सभी आम जन इसी रास्ते से आते-जाते थे…

ध्रुवों के बर्फ को पुराने अस्तित्व में लाने के प्रयासों का अध्ययन

डॉ.  अनूप कुमार जग्गी

पर्यावरण की समस्या महायुद्ध से भी अधिक खतरनाक हो रही है। यदि हम अभी नहीं जागे तो वह दिन दूर नहीं कि हमारा अस्तित्व ही समाप्त न हो जाय, ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए कई जलवायु सम्मेलन हो चुके हैं। कई वैश्विक मंचों से इस समस्या के निदान के लिए आवाज उठाई गई हैं। इस पर गंभीरता बरतते हुए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे रिसर्च केंद्र की योजना बनाई है…

गांधीवादी मूल्य और भारतीय मीडियाः एक विश्लेषण

अंजना शर्मा

भारत को स्वतंत्र हुए 74 वर्ष बीच चुके हैं। लेकिन आज यह एक नए किस्म की ग़ुलामी में जकड़ा हुआ दिखता है। समाज और समाज का दर्पण माना जाने वाला मीडिया दोनों ही भारतीय मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं। मीडिया की सामग्री और उसकी प्रस्तुति, मूल्यों में निरंतर ह्रास को प्रदर्शित करती है। प्रतीत होता है कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी और उनके जीवन मूल्यों को भी समाज ने भुला दिया है।

मीडिया एकाधिकार और क्रॉसस्वामित्व का पत्रकारिता पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन

  डॉ. भवानी शंकर

भारत में आर्थिक उदारवाद के उदय के साथ ही मीडिया का भी व्यवसायीकरण होने लगा। कॉरपोरेट जगत अपना एकाधिकार मीडिया पर भी जमाने लगा। बड़े मीडिया घराने छोटे मीडिया समूहों का अधिग्रहण कर रहे हैं। अखबारों के बहुसंस्करण निकल रहे हैं, जिनसे स्थानीय अखबार बंद होते जा रहे हैं…

दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देने में ई-कंटेंट की उपयोगिता

डॉ.मु. अफ़सर अली राईनी

हालिया वर्षों में शिक्षा की प्रकृति में अत्यधिक परिवर्तन आया है। लोगों का शिक्षा के प्रति नज़रिए में आए बदलाव को हम वर्तमान मार्किट की ज़रुरत भी कह सकते हैं। बहुत सारे ऐसे पेशेवर हैं जो नियमित मोड (रेगुलर मोड) की शिक्षा को आसानी से ग्रहण नहीं कर सकते।  इन्हीं ज़रूरतों को ध्यान में रखकर दूरस्थ शिक्षा का विस्तार हुआ। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो हमारे यहाँ दूरस्थ शिक्षा की विस्तार गति थोड़ी पिछड़ी प्रतीत होती है…

Influence of Public Service Advertising on Youth

Dr. Anjali Gupta

Public service announcements are advertisements on public service messages to educate, inform people on a particular social issue. Many resources in terms of infrastructure and finance are used for developing these PSAs but the actual affect is not noticed much. There are limited criteria on what can influence people and since not much research is done on this, it’s important to understand what motivates people in general and specially youth as they are the future of tomorrow.

Ram Shankar
DR. RAMSHANKAR M.PHIL., ICSSR-DRF, NET, PH.D., CHIEF EDITOR-THE ASIAN THINKER JOURNAL (ONLINE)