Journals

June 2019

Preface and Index

Adolescent Girls Empowerment through Social Media Activism:

A Case study of An NGO ‘Jan Vikas Sansthan’

Dr. Dheeraj Kumar & Dr T. Balasaravanan

Today, Social media especially Facebook activism has become a major force to promote the empowerment process. Now there are several issues such as woman empowerment, social transformation, human rights, environmental issues, feminist issues, political issues, developmental issues etcetera that are being discussed in the Facebook. We have realised the power of new media during the Arab spring. Indian scenario is changing, so is the role of new media. Facebook has been playing an important role in the socio-political empowerment of women in the country.

वैज्ञानिक चेतना के समर्थक बाबा साहब

डॉ. अंकिता मिश्रा

विज्ञान हमारे दैनिक जीवन से सीधा-सीधा जुड़ा हुआ है। हमारे प्रत्येक क्रिया-कलाप में विज्ञान की परिणति नजर आती है। हमारा शरीर, चारों-ओर का वातावरण, आहार-व्यवहार; सभी में विज्ञान समाया हुआ है। प्राचीन काल में जब मानव गुफाओं में रहता था और जब उसने आग का आविष्कार किया, वह कोई चमत्कारिक घटना नहीं थी, बल्कि वैज्ञानिक घटना थी। दो पत्थरों को रगड़ने से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई उसने आग को जन्म दिया।

Portrayal of Women in Electronic Media (With reference to NCR Region)

Meghna Mrinalini

The pre dominant attitude of the society gets revealed through the way subjects dealing with women are treated by the media. Electronic Media’s role towards woman status is becoming major concern of the feminist writers, basically regarding participation, performance and representation of women. Because different circumstances relating to the media’s role towards portraying the fair sex have opened a new angle by leaps and bounds to think precisely about it. There are various criticisms raised by the feminists. A majority of people in India consciously or unconsciously tend to believe that movies, or for that matter media in general, are often said to be the reflection of the society. It has been the topic of discussion that the media truly reflect the society or not, there’s no doubt that media have a big socio-cultural influence on the society.

Impact of Media Technologies on Society

Deepak

In this paper we discussed about the both positive and negative impact of media on society. Nowadays, large no of people is using social media. Media brings awareness to the people and I believe that it triggers thinking. Once the people are more aware it will automatically make them think good and better to create a healthy society. In the words of (Marshall Mc Luhan), the medium is the message because the medium is constituted by the people and the message is also supplied by the same people.

न्यू मीडिया का परंपरागत मीडिया पर प्रभाव   

डॉ. प्रशांत कुमार राय

आज न्यू मीडिया जनसंचार के सशक्त माध्यम के रूप में उभरा है। फेसबुक, व्हाट्सएप सभी के यूजर्स करोड़ों में हैं । अब समय रियल टाइम जर्नालिज्म का है । आज के दौर में लोग तत्काल खबरों को जानना चाहते हैं। इस जल्दीबाजी में कई र्बार न्यू मीडिया का नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है। न्यू मीडिया भी लगातार अपना स्वरूप बदल रहा है।  हर दिन नये नये एप आने से आज यह अपने सबसे ऊंचे पायदान पर मालूम चलता है लेकिन यह भी यहां पर किस तरह अपना वजूद बचा कर रखता है यह भविष्य पर ही निर्भर है।  न्यू मीडिया से जुड़ने पर व्यक्ति 24 घंटे खबरों की दुनिया में रहता है।

Role of Media in Right to freedom of speech and Expression

Prashant Mavi

This study focuses on the right to freedom of speech and expression,  and  also  to  study  the  intention  of  the framers of the Indian Constitution to insert Art 19(1) (a). Speech is a very unique gift by the God to the human being , through  which  human  being   conveys  his  thoughts,  sentiments  and  feeling  to  others.  Freedom of speech and expression is a natural human right which is acquired by the human being from his birth. Such a divine right of freedom of speech and expression is guaranteed to the citizens by almost all the democratic civil societies.

विधानसभा चुनाव के प्रति मतदाताओं की जागरूकता का अध्ययन (हरियाणा विधानसभा चुनाव के संदर्भ में)

कशिश वर्मा

यह शोध मूलतः भारतीय राज्य हरियाणा के 2019  विधानसभा चुनाव के परिपेक्ष्य में तथा राज्य के निवासियों की लोकतान्त्रिक जागरूकता पर केंद्रित है। चूँकि सभी राजनीतिक दल, टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक का सम्पूर्ण गणित जातीय समीकरण को साध कर करते है। इस कारण इस शोध का मुख्य उद्देश्य विधान सभा चुनाव के प्रति जनता की जागरूकता का अध्ययन, चुनाव में मुद्दों के आधार का विश्लेषण और केंद्र सरकार के द्वारा विधानसभा चुनाव पर प्रभाव का विश्लेषण करना है। साथ में यह शोध में राज्य के निवासिओं के नेता के प्रति, क्षेत्र के विकास के प्रति, और प्रतिनिधियों के प्रति तथा जातीय राजनीति के प्रति लोगों के रुख पर आधारित हैं।

Role of newspapers in health awareness of water borne diseases

(With special reference to arsenicosis)

Kamal Kishore Upadhyay & Dr. Partha Sarkar

Among various types water pollution, arsenic polluted water also exists. This pollution is nature generated water pollution. This pollution occurs due to excessive quantity of arsenic in the water source. The quantity of arsenic in this water is hundreds of times more than the standard. According to local newspapers about 100 people have lost their lives by drinking arsenic water during last ten years. 310 villages of Ballia are grip of arsenic. According to the World Health Organization, water should contain only 10 ppb (billion in parts) of arsenic, but in Ballia it has  crossed the 500 ppb level.

बाल विवाह और मीडिया का विश्लेषणात्मक अध्ययन

पूर्ति सिंह

प्रस्तुत शोध में बाल विवाह और मीडिया का अध्ययन किया गया है।  बाल विवाह कई वर्षों पुरानी प्रथा है जो सिर्फ कुरीति के रूप में मानी जाती है शिक्षा के अभाव के कारण यह प्रथा प्रचलन में आ गई।  बाल विवाह वर्तमान समय में गम्भीर रूप ले चुका है जिससे अनेकों प्रकार के दुष्परिणाम से बच्चे शिकार होते हैं।  समाज के इस अंधविश्वास को जानने के लिए मीडिया का रोल इसमें दर्शाया गया है।  

वैकल्पिक मीडिया और सामाजिक सुधार की संभावनाएँ

डॉ. वेद प्रकाश भारद्वाज

यह मीडिया का दौर है, ऐसा कहने का चलन अब बढ़ता जा रहा है। यह गलत भी नहीं है। पिछले तीन दशक में हमने मानव जीवन में मीडिया के चौतरफा प्रभाव को देखा है। सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ जीवन की धारा ही बदलती चली गयी। इंटरनेट, मोबाइल और टीवी जैसे जीवन निर्धारक बन गये हैं। इसके बाद भी मीडिया को लेकर कहीं न कहीं यह प्रश्न उठता ही रहता है कि क्या आज का मीडिया अपने व्यापक प्रभाव के बाद भी समाजोन्मुखी कहा जा सकता है? और यह भी कि आज जो मीडिया हमारे सामने है उसमें हमारे लिए कितने विकल्प हैं और उन विकल्पों की क्या संभावनाएँ हैं?